Rani Durgavati - The Brave Queen of Gondwana

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शौर्य, साहस, वीरता, पराक्रम की प्रतिमूर्ति वीरांगना रानी दुर्गावती भारत की ऐसी साम्राज्ञी हैं जिन्होंने इस्लामिक आक्रांताओं का प्रतिकार करते हुए उन्हें भारतीय नारी की शूरवीरता के समक्ष घुटने टेकने के लिए विवश कर दिया था। रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की ऐसी शासिका हैं जिनके विवाह के कुछ वर्ष उपरांत ही उनके पति का देहांत हो गया लेकिन उन्होंने निराशा के स्थान पर शौर्य को चुना और मातृभूमि की रक्षा में पराक्रम का परिचय देते हुए 24 जून, 1564 को जबलपुर के पास बरेला स्थित नरई नाला के समीप मुगल आक्रांता आसफ खां से युद्ध करते हुए स्वयं अपनी कटार से प्राण न्यौछावर कर दिए थे। यह वह समय था जब सभी ओर से उनके राज्य पर गिद्ध की भांति घात लगाए हुए आक्रमणकारी गढ़ा मंडला के राज्य को हड़पने में नजर गड़ाए हुए थे। किंतु रानी दुर्गावती का शौर्य एवं युद्ध नीति ऐसी थी कि युद्ध भूमि में अनेकों आक्रमणकारियों को परास्त कर उन्हें जान बचा कर भागने हेतु विवश कर देती थीं।

उनकी सेना में 2 लाख घुड़सवार 1000 हाथी दल के साथ-साथ बड़ी संख्या में पैदल सेना थी। रानी दुर्गावती ने उनके राज्य में आक्रमण करने आए मालवा के शासक बाजबहादुर को तीन बार पराजित किया और अकबर द्वारा भेजे गए आसफ खां को भी युद्ध मैदान में मुंह की खानी पड़ी थी। रानी दुर्गावती दोनों हाथों से तलवार चलाने, कुशल युध्दनीति में दक्ष थीं। वे जहां से जाती थी उधर से मुगलों का संहार करती रहती थीं। इससे चारों ओर मुगल सेना में हाहाकार मची रहती थी। रानी दुर्गावती के गढ़ मण्डला के शासन की कीर्ति चारों ओर फैली थी, साथ ही उनकी प्रजा हाथी और स्वर्ण मुद्राओं से लेनदेन करती थी, इतनी उत्कृष्ट उनकी अर्थव्यवस्था थी। नारियों के सम्मान से नारी सशक्तिकरण हेतु उन्होंने मातृशक्ति के मध्य कार्य किया था। उन्होंने रणभूमि हेतु अपनी सहायिका रामचेरी के नेतृत्व में "नारी वाहिनी" का भी गठन किया था। उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करते हुए प्रजापालन का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। रानी दुर्गावती माता ने जबलपुर में आधार ताल, ताल, चेरी ताल, सहित 52 तालाबों का निर्माण करवाया और इसके अतिरिक्त अनेक मंदिर व धर्मशालाओं का भी निर्माण कराया। किसानों के लिए भू-दान, गो-दान, धातुदान, पशुपालन की व्यवस्था कर किसानों के जीवन का उत्थान किया। दुर्गावती एक ऐसी अद्भुत वीरांगना रानी थीं जिन्होंने अपने जीवन काल में स्वयं को इस प्रकार तैयार किया कि उनसे भारतीय नारी का विराट स्वरूप प्रकट हुआ था। जो सम्पूर्ण राष्ट्र का आदर्श बनकर हम सभी के समक्ष है।

5 अक्टूबर 1524 दुर्गाष्टमी की पावन तिथि में चंदेल वंश में कालिंजर के किले में राजा कीर्ति सिंह के घर दुर्गावती का जन्म हुआ था। वे बचपन से ही बुद्धिमान और साहसी थीं और भाला, तलवार, धनुष-बाण चलाने व तैराकी में उन्होंने स्वयं को तपा लिया था। सन 1542 में उनका विवाह गोंडवाना राज्‍य (गढ़ा मंडला) के महाराजा संग्राम शाह के पुत्र दलपतिशाह से हुआ था। आगे चलकर उनके घर सन 1544 में वीर नारायण ने पुत्र के रूप में जन्म लिया। पति दलपतिशाह की मृत्यु के पश्चात वर्ष 1548 में पुत्र वीरनारायण का राज्‍याभिषेक कर मात्र 25 वर्ष की आयु में वीरांगना रानी दुर्गावती ने 52 गढ़ वाले गोंडवाना की बागडोर संभाल ली। इस प्रकार इतिहास में भारत की नारी शक्ति के शौर्य का प्रतीक रानी दुर्गावती बनीं। इस प्रकार चंदेल वंश की बेटी गोंडवाने की रानी बन गई तभी तो कवियों ने दुर्गावती जी के लिए लिखा है - 

चंदेलों की बेटी थी, गोंडवाने की रानी थी। 

चंडी थी - रणचंडी, वह दुर्गावती भवानी थी।।

वीरांगना माता रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती पर जबलपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने रानी दुर्गावती स्मारक का भूमिपूजन, डाक टिकट, चांदी का सिक्का जारी किया। इसके साथ ही जयंती के 500वें वर्ष के अवसर पर देश भर में ऐतिहासिक कार्यक्रम किए जा रहे हैं। जिसके माध्यम से रानी दुर्गावती की महान गाथा को देश के कोने-कोने में पहुंचाया जा रहा है। इसी दिशा में जब हम विश्व के सबसे बड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की कार्य प्रणाली की ओर देखते हैं तो ध्यान में आता है कि विद्यार्थी परिषद ने देश के महापुरुषों, क्रांतिकारियों से प्रेरणा लेकर उनकी शौर्य गाथा, आदर्श को विद्यार्थियों के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज तक पहुंचाने का कार्य किया है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव में भारत की स्वतंत्रता में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले ज्ञात-अज्ञात नायकों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए देशव्यापी अभियान चलाया। वहीं वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती के निमित्त उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अभाविप ने संकल्प लिया है। अभाविप ने भारत को अपने अद्वितीय साहस, शौर्य और पराक्रम से सशक्त करने वाली रानी दुर्गावती जी के आदर्शों, नीतियों, कुशल प्रबंधन तथा भारतीय नारी के आदर्श, नारी सशक्तिकरण की महागाथा को संपूर्ण राष्ट्र में पहुंचाने का कार्य करेगी‌ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने देश भर में रानी दुर्गावती जी के शौर्य पर आधारित शौर्यभामा - शौर्ययात्रा निकाली, व्याख्यान माला, दुर्गावती दौड़, शक्ति स्वरूपा-दंड प्रहार, नियुद्ध, रैली इत्यादि अनेकों कार्यक्रमों के माध्यम से युवा पीढ़ी के मध्य विचार रखने का कार्य किया। वीरांगना माता रानी दुर्गावती भारत के लिए प्रेरणा शक्ति हैं। यदि भारत को जानना है, भारत की मातृशक्तियों के आदर्शों को पहचानना है तो हमें वीरांगना माता रानी दुर्गावती जी के आदर्शों पर चलना होगा। ताकि भारत माता विश्व गुरु के सिंहासन पर पुनः विराजमान हो सकें और सभी दिशाओं में यही धुन सुनाई दे —

“सकल विश्व में गूंज रही है भारत माँ की जय जयकार”

 

(यह लेख वसुंधरा सिंह (क्षेत्रीय छात्रा प्रमुख, मध्यक्षेत्र एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद)  ने रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती के अवसर पर लिखा था)