परिषद के संकल्प की धुरी: अमृत महोत्सव अधिवेशन

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अपने स्थापना काल 09 जुलाई 1949 से ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने छात्र आंदोलन का अग्रिम नेतृत्व कर छात्रहितों की लड़ाई को जारी रखा है। इस मुहिम से जुड़ने वाले कार्यकर्ताओं के लिए प्रति वर्ष आयोजित होने वाला विमर्श उत्सव है विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन। देश के कोने-कोने और प्रत्येक शैक्षणिक संस्थानों से आने वाले विद्यार्थी एक स्थान पर एकत्रित हो चिंतन व चर्चा करते हैं तो राष्ट्रशक्ति को दृढ़ता और बल मिलता है। ऐसे महत्वपूर्ण समय में जब देश का अमृतकाल और परिषद की 75 वर्षों की यात्रा पूर्ण हो रही हों तो यह निश्चित रूप से राष्ट्र की विकास यात्रा को गति देने वाली है। इस दौरान अनेकों पीढ़ियां इस यात्रा की सहभागी रही हैं। 50 के दशक में आकार ले चुके विचार को 60 के दौर में आचार्य गिरिराज किशोर, यशवंतराव केलकर, बाल आपटे और मदनदास देवी जैसे शिल्पकारों ने गढ़ा और इस पौध को सिंचित किया जो कि आज विराट वटवृक्ष बन चुका है।

इस वटवृक्ष का 69वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन 07 से 10 दिसंबर 2023 को देश की राजधानी दिल्ली के बुराड़ी में अस्थायी और पर्यावरण अनुकूल टेंट सिटी में आयोजित किया गया। भव्य अधिवेशन स्थल को दिल्ली के प्राचीन इतिहास के आधार पर इंद्रप्रस्थ नगर का नाम दिया गया, मदनदास देवी जी के नाम पर निर्मित मुख्य सभागार के मंच पर गौरवशाली भारत की छवि उगते सूर्य की किरणों की भांति उकेरी गई थी। चार दिनों तक चले इस अधिवेशन की तैयारियां महीनों से जारी थी, सैकड़ों कार्यकर्ता इसके लिए दिन-रात लगे थे। साथ ही देशभर के विद्यार्थियों के मध्य सोशल मीडिया से पहुँच रही जानकारी से उत्सुकता बढ़ रही थी। 

 

अधिवेशन की झलकियां: 

प्रदर्शनी उद्घाटन: 

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अधिवेशन की शुरुआत 07 दिसंबर को प्रातः 11 बजे पूर्व अध्यक्ष व महामंत्री रहे डॉ. राजकुमार भाटिया द्वारा दत्ताजी डिडोलकर प्रदर्शनी के उद्घाटन से हुई। 8 थीमों पर आधारित और 9 सेक्शन में रची इस प्रदर्शनी को देशभर के 150 इंटर्न्स द्वारा हस्तनिर्मित किया गया था। जिसमें शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ पर उनकी शौर्यगाथा, विश्वगुरु भारत, गौरवशाली भारत, स्वाधीनता का अमृत महोत्सव, अभाविप के विभिन्न आयामों और गतिविधियों द्वारा किये जा रहे कार्यों, दिल्ली का वास्तविक इतिहास, दिल्ली में हुए प्रमुख छात्र आंदोलन एवं अभाविप के 75 वर्षों की ध्येय यात्रा को प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया।  

 

हिंदवी स्वराज यात्रा व ध्वजारोहण : 

इस वर्ष छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगाँठ है, अधिवेशन से पूर्व इस उपलक्ष्य में 28 नवम्बर से प्रारम्भ हुई अभाविप की हिंदवी स्वराज यात्रा 75 किलों से संग्रहित की गयी पुण्यमिट्टी कलश के साथ अधिवेशन के प्रारंभ में 07 दिसंबर को कार्यक्रम  स्थल पर पहुंची, जहाँ कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों द्वारा इसका भव्य स्वागत किया गया। शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज की संकल्पना के लिए जीवनपर्यंत प्रयास किया उसको भावी पीढ़ियों तक प्रेषित करने हेतु यह सार्थक कदम था। कीर्तिमान स्थापित करते हुए ध्वजारोहण के उपरांत एक साथ 8500 विद्यार्थियों और 150 दिव्यांग विद्यार्थियों द्वारा सामूहिक वंदे मातरम का गायन किया गया।

 

महामंत्री प्रतिवेदन और निर्वाचन: 

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संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में स्थापित अभाविप का आज विश्वव्यापी स्वरूप अनंत संघर्षों की देन है। आज इसका अस्तित्व भारत के प्रत्येक शैक्षिक परिसर में है तथा इसके साथ ही सामाजिक, पर्यावरणीय, सेवा, खेल, आदि क्षेत्रों में भी प्रभावी रूप से समाधान का विकल्प देते हुए कार्य कर रही है। परिषद ने वर्ष भर राष्ट्रीय महामंत्री के नेतृत्व में जो कार्य किए उनका ब्यौरा रखते हुए महामंत्री श्री याज्ञवल्क्य शुक्ल ने कहा कि इस वर्ष एबीवीपी की सदस्यता 50,65,624 के साथ विश्व के सबसे बड़े छात्र संगठन के रूप में अपनी साख पुनः स्थापित की है। अभाविप कार्यकर्ताओं द्वारा राजस्थान सरकार की धांधली और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अन्याय के विरुद्ध खड़े होकर सामाजिक चेतना को जागृत और प्रदेश सरकार की ईंट से ईंट बजाने का काम किया गया। तेलंगाना में बेरोजगारी के खिलाफ प्रखर नेतृत्व किया। देश के विभिन्न राज्यों में रचनात्मक कार्यक्रम के साथ कार्यकर्ता पर्यावरण संरक्षण, सेवा परमो धर्म: के संकल्प को सिद्धि की तरफ ले गए। हर वर्ष की भांति इस वर्ष युवाशक्ति को नेतृत्व प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष और महामंत्री के रूप में सर्वसम्मति से पुनः डॉ राजशरण शाही और श्री याज्ञवल्क्य शुक्ल को पुनःनिर्वाचित किया गया। विद्यार्थी परिषद की इस लोकतान्त्रिक परंपरा से विद्यार्थियों में सामंजस्य और सद्भावना की पौध पड़ेगी और भविष्य में उनके मार्ग को चयनित करने में सुगमता होगी। 

 

उद्घाटन: 

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69वें राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह द्वारा इंद्रप्रस्थ नगर के मदनदास देवी सभागार में किया गया। साथ ही थीम सॉंग और राष्ट्रीय चेतना पर आधारित 5 पुस्तकों का विमोचन किया। उद्घाटन में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि मुझे चार दशक पहले का समय याद आ रहा है जब मैं कार्यकर्ता के रूप में पिछली पंक्ति में बैठा करता था। चीन युद्ध के बाद पूर्वोत्तर को देश से जोड़ने का कार्य करने वाला एकमात्र संगठन परिषद है। मैं गौरवान्वित हूँ कि मैं परिषद द्वारा सिंचित हूँ। शिल्पी ने 75 वर्षों तक जिस प्रतिमा को गढ़ा है, अभाविप तैयार हुई वह मूर्ति है। यह देश के लिए जीने का समय है, युवा भारत माता को जीवन समर्पित करने के संकल्प के साथ जाए। 

75 वर्षों की यात्रा में परिषद ने केवल प्रश्न ही नहीं अपितु उनके समाधान भी प्रस्तुत किए हैं। साथ ही भारत के युवाओं को देश के वास्तविक इतिहास से परिचित भी कराया है। देखा जाए तो परिषद की यात्रा में त्याग, समर्पण और तप सदैव विद्यमान रहता है। जब मणिपुर को देश से अलग करने की राजनीति हुई थी, परिषद तब एकमात्र संगठन था जिसने इसका पुरजोर विरोध किया। आज इसके परिणाम SEIL के रूप में देखने को मिल रहे हैं। 

 

भाषण के माध्यम से वैचारिकी को मिली दिशा: 

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राष्ट्रीय अधिवेशन में देश भर से आए विद्यार्थियों को देशज संस्कृति से न केवल जोड़ने का काम किया गया अपितु राष्ट्रवादी वैचारिकी के लिए परिषद के संघर्ष और इसके उद्देश्यों पर भी चर्चा की गई। अधिवेशन में हुए दो उद्बोधनों ने पूर्व की तपस्या से वर्तमान पीढ़ी को अवगत कराया और यह मातृभूमि की सेवा में तत्पर रहने की अपेक्षा भी प्रस्तुत की। उद्घाटन के पश्चात 08 दिसंबर को राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री आशीष चौहान ने अपने सम्बोधन में कहा कि कोई भी ऐसा संगठन नहीं हुआ जो अपनी स्थापना के पश्चात इतने वर्षों तक न विभाजित हुआ और न बिखरा है। पद्मनाभ आचार्य जी ने कहा कि संघ ने हमें विचारधारा दी लेकिन विद्यार्थी परिषद ने हमें विचारधारा के क्रियान्वयन हेतु मार्ग दिया। 1970 के दशक से ही परिषद ने छात्रशक्ति को राष्ट्रशक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया है। जबकि संसार के विद्वत और चिंतकों ने परिषद और छात्रशक्ति को पहचाना ही नहीं और मनोवैज्ञानिकों ने इसको स्वीकार्यता नहीं दी। प्रारंभ से ही परिषद के शिल्पकारों और विचारकों ने यही कहा कि आज का विद्यार्थी कल का नागरिक नहीं है अपितु आज का ही नागरिक है। 1971 के गुवाहाटी अधिवेशन में परिषद ने परिसरों से भ्रष्टाचार हटाने की कवायद शुरू कर दी। 1970 में जब परिषद को सत्ता में शामिल होने का अवसर मिला तो कार्यकर्ताओं ने साफ मना करते हुए कह दिया कि ‘सत्ता नहीं चाहिए, हमें तो समाज बदलना है।‘ SEIL के माध्यम से समाज ही नहीं बल्कि जीवन में भी बदलाव देखने मिल रहा है। इसी प्रकार से SFD और SFS के माध्यम से विद्यार्थी समाज, पर्यावरण और मानवता की तरफ भी सजग होकर कार्य कर रहा है। यशवंतराव केलकर जी ने कहा था कि परिषद समाज के सभी क्षेत्रों में योगदान करेगी, यह आज स्पष्ट रूप से प्रदर्शित भी हो रहा है। राष्ट्रीय संगठन मंत्री का भाषण परिषद की 75 वर्षों की यात्रा को रेखांकित कर वर्तमान पीढ़ी को उनके दायित्व का बोध कराने वाला था। 

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वहीं अधिवेशन में दूसरा उद्बोधन राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री सीआर. मुकुंद जी ने दिनांक 09 दिसंबर को रखा। उन्होंने अपने वकत्व में कहा कि वैश्विक परिदृश्य में भारत एवं युवाओं की भूमिका को स्पष्ट करने हेतु हमें वैसा ही दिखना होगा जैसे हम हैं। भूगोलिक राजनीति में अस्थायी बहु-ध्रुवीय शब्द का प्रयोग बढ़ा है। संसार में परिवर्तन हो रहे हैं और इन परिवर्तन में हम अच्छी स्थिति में जा रहे हैं। देखा जाए तो रूस-यूक्रेन में युद्ध के आपूर्ति माध्यमों में बदलाव हुआ लेकिन भारत पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन वैश्विक स्तर पर प्रभाव बनाना है तो अभी तक जितना किया है उससे बढ़कर करना पड़ेगा। हम चाहे कहीं भी रहें, हमें अपने व्यवहार और चिंतन में भारतीयता को बढ़ाना है। मातृ समाज में परिवर्तन का कार्य अभी भी बाकी है। इसमें महत्वपूर्ण भागीदारी हमारी होनी चाहिए। इस प्रकार से देशभर से आए विद्यार्थियों को राष्ट्र सेवा और उसकी उन्नति में सहभागिता करने हेतु मुकुंद जी ने प्रोत्साहित किया। 

 

राजधानी की सड़कों पर लघु भारत के दर्शन: शोभायात्रा व खुला अधिवेशन 

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परिषद के अधिवेशन में शोभायात्रा का अनुपम अनुभव सभी की स्मृतियों में जीवन पर्यंत अंकित होने वाला रहता है। 69वें राष्ट्रीय अधिवेशन में देश भर के युवा 4 पंक्ति में एक साथ दिल्ली की सड़कों पर चल रहे थे। इसकी विशेषता थी कि प्रत्येक प्रांत के प्रतिनिधि अपनी स्थानीय संस्कृति और वेशभूषा को प्रस्तुत करते हुए लगभग 10000 विद्यार्थियों का 62 स्थानों पर दिल्लीवासियों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। अमृत महोत्सव वर्ष के अधिवेशन में आयोजित शोभायात्रा में "अलग भाषा अलग वेश फिर भी अपना एक देश” के समागम से भारत की एकता में विविधता और अखंडता के दिव्य स्वरूप देखने को मिला। आयोजन स्थल से दिल्ली विश्वविद्यालय के मारिस नगर चौक तक 4 किमी की यात्रा में भ्रमण करते हुए भूगोलिक विविधताओं के आधार पर चित्रित भारतीय संस्कृति का प्रत्यक्ष दर्शन कराया। इस लंबी यात्रा में 2 किमी लंबी तो प्रतिनिधियों की  कतार थी।   

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साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को चरितार्थ करते हुए अखंडता में व्याप्त विभिन्न स्वरूपों का दर्शन कराया। इस दौरान देश की राजधानी दिल्ली की सड़कें `भारत माता की जय और कश्मीर से कन्याकुमारी भारत माता एक हमारी’ के नारों से गूंज उठी। शोभायात्रा की समाप्ति के पश्चात खुला अधिवेशन हुआ। इसमें छात्र नेताओं ने राष्ट्रीय महामंत्री श्री याज्ञवल्क्य शुक्ल के नेतृत्व में शिक्षा, रोज़गार के मुद्दों पर सरकारों पर प्रश्न खड़े किए।

जनजातीय समाज को मूल अस्तित्व से विभाजित करने के षड्यन्त्र का विखंडन करते हुए राष्ट्रीय मंत्री श्री होशियार सिंह मीणा ने जातिगत राजनीति पर कटाक्ष किया। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष श्री तुषार डेढ़ा ने ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव नहीं कराए जाने पर सरकार का घेराव करते हुए चुनाव कराए जाने की मांग की। मेरठ प्रांत की मंत्री सुश्री क्षमा पंडित ने तत्कालीन समय में महिला विमर्श पर विचार रखे और नारी वंदन अधिनियम का स्वागत किया। इसके अलावा विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए अन्य छात्र नेताओं द्वारा सामाजिक न्याय एवं आर्थिक विषमता, पर्यावरण संरक्षण के संबंध में हिमालय को बचाने के प्रयासों और बीते 10 वर्षों में पूर्वोत्तर की विकास यात्रा जिससे पूर्वोत्तर का पूर्वोदय हुआ है, जैसे विषयों पर अपनी बात रखी। 

अपने उद्घोष में श्री याज्ञवल्क्य शुक्ल ने एनटीए द्वारा कराए गए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में हुई समस्या, राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता, NAAC द्वारा शिक्षण संस्थानों को प्रामाणिकता प्रदान किये जाने में हो रही धांधली, केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा रिक्त पदों पर शीघ्र भर्ती सुनिश्चित किये जाने, विद्यार्थियों द्वारा बड़ी संख्या में आत्महत्या  की घटनाएँ, नॉन-नेट छात्रवृत्ति जैसे मुद्दों पर सवाल उठाए एवं POK को पुनः भारत में शामिल किये जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि, “राष्ट्र की चेतना युवाओं से है और वर्तमान समय में युवाओं की शिक्षा और रोजगार के प्रति सरकारों को ठोस कदम उठाने चाहिए।"

 

प्रा. यशवंतराव केलकर पुरस्कार: 

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हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत युवाओं को प्रा. यशवंतराव केलकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया, परंतु इस वर्ष विशेष यह था कि एक नहीं अपितु विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले तीन युवाओं को सम्मानित किया गया। यह युवा थे श्री शरद विवेक सागर, सुश्री लहरीबाई और श्री वैभव भण्डारी। विद्यार्थी परिषद के शिल्पकार और राष्ट्रीय अध्यक्ष, महान शिक्षाविद प्राचार्य यशवंतराव केलकर पुरस्कार शरद को विश्व के विभिन्न देशों में पढ़ने वाले भारतीय विद्यार्थी जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और विदेशों में पढ़ने में असमर्थ हैं उन्हें अवसर प्रदान किया है। वहीं मिलेट क्वीन के नाम से जाने जानी वाली लहरीबाई ने श्रीअन्न को सँजोए रखा है और उसके प्रयोग व संरक्षण को बढ़ावा दिया है। वहीं वैभव भण्डारी ने अपनी शारीरिक अक्षमता को अपनी शक्ति बना समाज में युवाओं को आगे लाने के लिए प्रयास किया है। इन तीन विशिष्ट युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए परिषद के पूर्व कार्यकर्ता और प्रख्यात पत्रकार श्री रजत शर्मा ने इन्हें पुरस्कार प्रदान किया। साथ ही विद्यार्थी काल के अपने अनुभव साझा किए। रजत जी ने कहा कि स्वर्गीय अरुण जेटली जी के साथ किस प्रकार से परिषद का काम सीखा और कंधे पर हाथ रख कर कार्यकर्ता निर्माण करने की कला से समाज निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार करना इसकी खासियत है।

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इसी के साथ अधिवेशन अपनी पूर्णता की तरफ बढ़ रहा था। अक्षरधाम मंदिर के आकर में मुख्य सभागार का ढांचा, महाराजा मिहिर भोज और महाराजा सूरजमल के नाम पर बने दो द्वार जो छात्रा व छात्र आवास की तरफ जाते थे, 8 रसोइयों में बन रहे 12 नगरों के भोजन, यहाँ तक कि नगरों के द्वार पर तुलसी का पौधा और केले के पौधे इसको भारतीय संस्कृति के परिचायक बना रहे थे। मुख्य प्रवेश द्वार दिल्ली के पुराने किले के आकर में था साथ ही विभिन्न कोने पर वीरांगनाओं और वीरों की प्रतिमाएँ इसकी भव्यता को बढ़ा रही थी। 

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इस अधिवेशन में आईआईटी दिल्ली के विद्यार्थियों द्वारा ड्रोन शो इस आयोजन का मुख्य आकर्षण रहा। ज़ीरो फूड वेस्टेज से प्रेरित होकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया। वहीं अधिवेशन से पूर्व भी यह पूरे देश में विशेष चर्चा में बना रहा कि किस प्रकार परिषद रीसाइकल का अनोखा प्रयोग अपने आयोजन में कर रही है। ‘कबाड़ से जुगाड़’ नाम की इंटर्नशिप शुरू कर परिषद ने बोतल से डस्ट्बिन और टायरों से बैठने की कुर्सी तैयार की थी। वही विभिन्न संस्थानों से आए विद्यार्थियों ने अपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन कर के उपयोग की वस्तुएँ निर्मित की थी। पर्यावरण व स्वच्छता का उदाहरण परिषद सभी द्वारा सभी को दिया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश की गीत-संगीत और नृत्य ने सभी को मंत्रमुगध किया। इस 69वें राष्ट्रीय अधिवेशन में रचनात्मकता और सकरात्मकता का पूर्ण प्रदर्शन रहा है। अधिवेशन के पूर्ण होने पर अनेकों कार्यकर्ता एक दूसरे से पुनः मिलने की बात करते हुए अपने अपने संकल्प क्षेत्र की तरफ बढ़ रहे थे। यह भव्य आयोजन आगामी वर्षों में परिषद की दिशा भी तय करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाला सिद्ध होगा।  

 

(शाम्भवी शुक्ल, शोधार्थी, JNU दिल्ली)