स्व.यशवंतराव केलकर एवं आज की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

 

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2024 में विद्यार्थी परिषद ने अपनी अमृत महोत्सवी वाटचाल पूर्ण करते हुए अपनी राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ध्येय यात्रा निरंतर शुरू रखी है और ये शुरू ही रहेगी। इस यात्रा के एक अर्थ से प्रमुख शिक्षक का नाम है स्व. यशवंतराव केलकर। इस यात्रा में आज तक लाखों से ज्यादा विद्यार्थी कार्यकर्ता शामिल हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे।

हमारी भारतीय संस्कृति में एकात्म मानव दर्शन का सिद्धांत अहम महत्व का है। इस सिद्धांत को जिस महानुभाव व्यक्ति ने समाज के सामने लाया उस व्यक्ति का नाम था पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी। इस एकात्म मानव दर्शन का मुख्य सूत्र है व्यक्ति को जैसा शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा होता है वैसे ही संगठन का भी शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा होता है। इस सूत्र को ध्यान में रखते हुए विचार किया तो एक अर्थ से स्व. यशवंतराव केलकर जी का शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा एवम् विद्यार्थी परिषद का शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा एक ही था और है। आज भले ही यशवंत राव केलकर जी जीवित रूप में नहीं हैं लेकिन उनके समर्पित जीवन को आदर्श मानते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जो उनके ही सिद्धांतों पर चल रही है। विद्यार्थी परिषद यानि यशवंतराव केलकर और यशवंत राव केलकर यानि विद्यार्थी परिषद ऐसा संबंध निर्माण होना ये एक अर्थ से एकात्म मानव दर्शन का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

वस्तुतः यशवंत राव केलकर जी विद्यार्थी परिषद के संस्थापक भी नहीं या निर्माता भी नहीं फिर भी ये अटूट रिश्ता निर्माण होना ये व्यक्ति के संगठन शरणता और समर्पण का उत्तम उदाहरण है।

राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के व्यापक संदर्भ में शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाली एवम् रचनात्मक दृष्टिकोण और शैक्षणिक परिवार के अस्तित्व पर दृढ़ विश्वास रखने वाली तथा दलगत राजनीति के ऊपर उठकर कार्य करने वाला एक आदर्श विद्यार्थी संगठन खड़ा हो ये विद्यार्थी परिषद का उद्देश्य था, है और रहेगा और यही है विद्यार्थी परिषद की सैद्धांतिक भूमिका। इस भूमिका का शब्दशः क्रियान्वयन करने का आग्रह और प्रयास जिस व्यक्ति ने किया उस महानुभाव व्यक्ति का नाम यानी स्व. यशवंतराव केलकर जी। भले इस सैद्धांतिक भूमिका को शब्द बद्ध करने में कई अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं का योगदान रहा है जैसे कि स्व. मदन दास जी, स्व. बाला साहब आपटे जी, स्व. पद्मनाभ आचार्य जी ये सभी महानुभाव कार्यकर्ता यशवंत राव केलकर जी के पथ पर चलने वाले पथिक थे।

यशवंत राव केलकर जी से लेकर ऐसे सभी समर्पित कार्यकर्ता विद्यार्थी परिषद के आदर्श हैं और आदर्श ही रहेंगे। इन सभी कार्यकर्ताओं का जन्म विद्यार्थी परिषद के लिए ही हुआ था और अपना पूरा जीवन विद्यार्थी परिषद के लिए ही इन कार्यकर्ताओं ने समर्पित किया ये वस्तुपाठ हम सब देख रहे हैं। लेकिन इस आदर्श के प्रमुख मार्गदर्शक थे स्व. यशवंत राव केलकर जी। आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बढ़ रही है गुणात्मक और संख्यात्मक दृष्टि से लेकिन इस का बढ़ना, विकसित होना इस में मूल भूमिका जिस व्यक्ति ने निभाई उस व्यक्ति का नाम स्व. यशवंतराव केलकर जी।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की और एक खासियत यानि उसकी वेल टेस्टेड 'कार्यपद्धति' तो इस कार्यपद्धति का आग्रह और इस का क्रियान्वयन हो इस के लिए अपना एक अर्थ से जीवन समर्पित जिस व्यक्ति ने किया उस व्यक्ति का नाम स्व. यशवंत राव केलकर जी। ऐसा भी हम कह सकते हैं कि यशवंत राव केलकर जी को देखते-देखते ही विद्यार्थी परिषद की कार्य पद्धति का निर्माण हुआ। यशवंत राव केलकर जी हमेशा कहते थे कि हम सब अपूर्णांक हैं और हमें पूर्णांक की ओर जाना है और इस पूर्णांक की ओर जाने के लिए हमारे साथ है हमारी सैद्धांतिक भूमिका और हमारी कार्यपद्धति और इस सैद्धांतिक भूमिका तथा कार्यपद्धति के मार्गदर्शक निर्माता थे स्व.यशवंतराव केलकर जी।

स्व. यशवंतराव केलकर जी ने पूरे जीवन भर एक ही काम किया उसे कहते है ‘माणूस नावाचे काम‘ यानि Towards Man Making यानि कार्यकर्ता को पूर्णांक की ओर ले जाने का प्रयास। अभी भी ये प्रयास निरंतर जारी है। इस प्रयास का नाम है परिषद की ’ध्येययात्रा’। इस यात्रा को वास्तव में और शब्दशः अखिल भारतीय स्तर पर ले जाने का कार्य जिसने किया उन का नाम स्व.यशवंत राव केलकर जी।

सामूहिकता, अनामिकता ये विद्यार्थी परिषद की कार्य पद्धति के गुण वैशिष्ट्य है। इस का विचार करें तो विद्यार्थी परिषद के यश और सम्मान को किसी एक व्यक्ति का नाम देना उचित नहीं होगा, फिर भी अंततो गत्वा सब को ज्ञात है कि इस ध्येय यात्रा के प्रमुख कार्यकर्ता थे स्व. यशवंत राव केलकर जी।

हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार सामान्य मनुष्य चार आश्रमों से गुजरता है ऐसा वर्णन किया है। पहला है - ब्रह्मचर्य आश्रम, दूसरा - गृहस्थ आश्रम, तीसरा - वानप्रस्थ, आश्रम और चौथा - संन्यास आश्रम। विद्यार्थी परिषद का कार्यक्षेत्र है ‘विद्यार्थी’ और विद्यार्थियों के लिए ब्रह्मचर्य आश्रम अहम माना गया है तो ऐसे विद्यार्थियों ने इस आश्रम में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसका वस्तुपाठ उनके सामने रखने की आवश्यकता होती है तो ऐसा वस्तुपाठ जिसने रखा वो है विद्यार्थी परिषद के स्व. यशवंत राव केलकर जी।

यशवंत राव केलकर जी ने अपने केवल 62 वर्ष की आयु में इन सभी आश्रमों का अनुभव किया। भले केलकर जी ने शब्दशः संन्यास न लिया हो लेकिन संन्यास वृत्ति का भाव यशवंत राव केलकर जी में था। कहने का तात्पर्य यह है कि विद्यार्थियों को उनकी भाषा में उनके साथ जुड़ते रहते हुए अपना राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का कार्य उनसे कैसे करवाके लेना है, इसका उदाहरण हैं स्व. यशवंत राव केलकर जी और एक बार इस आश्रम में सही संस्कार हो गए तो पूरे जीवन भर व्यक्ति के बिगड़ने की संभावना बहुत ही कम हो जाती है इसलिए ऐसा कहते हैं कि विद्यार्थी परिषद से जब कोई कार्यकर्ता जुड़ जाता है तब उसका जीवन सार्थक जरूर होता है और ऐसी सार्थकता ही इन सब आश्रमों का आधार है। 

ये सब पढ़ने के बाद मन में स्वाभाविक प्रश्न खड़ा हो सकता है कि स्व. यशवंत राव केलकर जी स्वयं कैसे थे? उनका आचरण कैसा था? स्वभाव कैसा था? दिनचर्या कैसी थी? घर परिवार कैसा था? ऐसे एक ना अनेक प्रश्न उत्सुकता से निर्माण हो जाते हैं तो यशवंत राव केलकर जी के साथ जिन्होंने काम किया उनका मार्गदर्शन जिनको मिला उनके साथ रहने का बातचीत करने का अवसर जिनको मिला ऐसे कई जेष्ठ कार्यकर्ताओं से मिलकर कुछ बिंदु सामने आए उसका वर्णन कुछ इस प्रकार है:

१) कार्यकर्ताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत होनी चाहिए।

२) कार्यकर्ता ही संगठन का आधार है तो इस कार्यकर्ता के प्रश्न चाहे वो कौटुंबिक हों या शैक्षणिक हों, उस प्रश्न को लेकर उसके साथ जुड़े रहना अत्यंत आवश्यक होता है और उस कार्यकर्ता को संगठन से जाड़े रखने के लिए प्रयास करना। ऐसा करने से वो जीवन भर परिषद से जुड़ा रहता है।

३) संवाद के माध्यम से ही आत्मीयता का निर्माण होता है और ऐसी आत्मीयता ही परिषद की संपत्ति है, इसलिए परिषद के कार्यकर्ता जीवन के हर क्षेत्र में सार्थक जीवन का अनुभव करते हैं।

४) हमारा काम सर्वसमावेशी है और कार्यकर्ता केंद्रित है।

५) विद्यार्थी परिषद में एलिमिनेशन नहीं बल्कि सर्व समावेशक वृत्ती का आग्रह होता है।

६) छात्र छात्राओं में निकोप सात्विक मैत्री होनी चाहिए और होती है।

७) सामाजिक समरसता का भाव अपने उदाहरण से प्रस्तुत करना चाहिए।

८) कार्यकर्ता संगठन कर्मठ होना चाहिए लेकिन उतना ही प्रेमल भाव कार्यकर्ता में होना चाहिए।

९) कार्यकर्ता को विश्वास में लेकर उसे बोलने के लिए उद्युक्त करना और उसे कहना कि आपकी सब बातें मेरे मन के दरवाजे में कुलुप बंद हैं और इसकी चाबी उस कार्यकर्ता के पास ही रहेगी जब वो कहेगा तब ही इसका ताला खुलेगा। देखने में तो ये आसान लगता है लेकिन इसी विश्वास के आधार पर विद्यार्थी परिषद में कार्यकर्ता परिषद से जीवन भर जुड़ जाते हैं।

10) हर समय आपके पास और साथ डायरी होनी चाहिए और उसका उपयोग करना चाहिए।

यशवंत राव केलकर जी के बारे में ये तो कुछ ही बिंदु हो गए जो बातचीत में सामने आए लेकिन जिनका जीवन ही परिषदमय था, जो स्वयं ही विद्यार्थी परिषद थे, वो विद्यार्थी परिषद को किस नजर से देखा करते थे उसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में यशवंत राव केलकर जी और उनके समान कार्यकर्ताओं को आदर्श रखते हुए विद्यार्थी परिषद ने क्या सीखा उस बिंदु का वर्णन कुछ इस प्रकार हो सकता है:

 विद्यार्थी परिषद यानि छात्र शक्ति यानि राष्ट्र शक्ति।

 विद्यार्थी परिषद यानि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के व्यापक संदर्भ में कार्य करने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि एक आंदोलन देश के लिए।

 विद्यार्थी परिषद यानि छात्रों में समाजभान निर्माण करने वाला और समाज मन जानने वाला संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि उत्साह, तेज, और राष्ट्र भक्ति से ओतप्रत भरा हुआ छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि ‘राष्ट्रप्रथम’ ये संस्कार छात्रों में रुजाने वाला संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि शिक्षा क्षेत्र में अपना स्थान, कार्य कर्तृत्व से निर्माण करने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि शैक्षिक परिवार के अस्तित्व पर दृढ़ विश्वास रखने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि कार्यक्रम, उपक्रम, एवम् आंदोलनों के माध्यम से युवा वर्ग को जोड़ने वाला संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि दलगत राजनीति के ऊपर उठकर कार्य करने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि 'आज का विद्यार्थी - आज का ही नागरिक' मानने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि समाज को एकीकृत रखने के लिए कटिबद्ध रहने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि विविध आयाम, गतिविधि और सेवा कार्य के माध्यम से छात्रों में बसे विविध गुणों को प्रोत्साहन देने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि अपनी सैद्धांतिक भूमिका एवम् कार्यपद्धति को सर्वोच्च मानने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि कार्यकर्ता निर्माण की प्रयोगशाला।

 विद्यार्थी परिषद यानि ज्ञान- शील और एकता।

 विद्यार्थी परिषद यानि भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय संस्कृति, भारत का इतिहास युवा पीढ़ी में रूजाने के लिए प्रयास करने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि छात्र छात्राओं में नीकोप मैत्री का आग्रह और संस्कार करने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि छात्रशक्ति का तत्वज्ञान सबसे पहले रखने वाला छात्र संगठन।

 विद्यार्थी परिषद यानि भारत को विश्व गुरु का स्थान मिलने के लिए युवा वर्ग में चेतना निर्माण करने वाला छात्र संगठन।

अंत तो गत्वा

 विद्यार्थी परिषद यानि छात्र शक्ति यानी राष्ट्र शक्ति यानी एक आंदोलन देश के लिए।

आज जो विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रूप में कार्य कर रहे हैं ऐसे छात्र कार्यकर्ताओं ने स्व. यशवंत राव केलकर जी को नहीं देखा फिर भी उनका जीवन चरित्र पढ़ने के बाद उनके बारे में उनको पहचानने वाले कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत होने के बाद यही भाव निर्माण होता है कि हमारा दुर्भाग्य है कि हमें यशवंत राव केलकर जी का सानिध्य प्राप्त नहीं हुआ लेकिन उनकी कार्यपद्धति एवम परिषद की सैद्धांतिक भूमिका का पालन करने से स्व. यशवंत राव केलकर जी की आत्मा को शांति मिलेगी। जैसा पहले बताया है कि यशवंत राव केलकर एक व्यक्ति और यशवंत राव केलकर एक संगठन (अभाविप) एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यानू दोनों का शरीर मन बुद्धि और आत्मा एक ही है। स्व.यशवंत राव केलकर जी की स्मृति को कोटि-कोटि प्रणाम।

 

-- प्रा. डॉ. प्रशांत साठे, केंद्रीय कार्यसमिति सदस्य, अभाविप